"छोटे लोहिया" के नाम से जगत-ख्यात जनेश्वर मिश्र हम लोगों के प्रेणा पुरुष थे। उनमें आदर्श व व्यवहार तथा सिद्वान्त एवं कर्म का अद्भुत समन्वय था, वे राजनीति में रहते हुए संत थे। दीर्घकालीन राजनीति में वे उस परम्परा कें अग्रदूत थे जो अर्जित पद एवं सम्पदा क कारण नहीं अपितु अपनी विशिष्ट कार्यप्रणाली, सोच, त्याग एवं सैद्वान्तिक प्रतिबद्धता के कारण वरेण्य एवं स्तुत्य हैं। आचार्य नरेन्रदेव, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, डा0 राममनोहर लोहिया, श्रीधर महादेव जोशी, अरुणा आसफ अली सरीखे त्यागमूर्ति., चिंतक एवं कर्मयोगी समाजवादी आन्दोलन की विरासत हैं, जिन्होंने समय- समय पर समाजवादी विचारधारा को गत्वरता दी और विचारधारा को परिमार्जित कर आम जनता के और निकट लाये, शाश्वत चिंतन को सामयिक बनाया, जनेश्वर जी ने उनके अधूरे कार्यों को पूरे मनोयोग से आगे बढ़ाया और आगे बढ़ाते रहने, की सीख भी दी।
मैं तब बोर्डिग में रहकर पढ़ाई कर रहा था। छुट्टियों में लखनऊ आया था। एक दिन घर पर मेरे पिता नेताजी मुलायम सिंह यादव ने मेरी समाजवादी चिंतक जनेश्वर मिश्र से मुलाकात करवाई, वह मेरी उनसे पहली मुलाकात थी। मैंने उनके पैर छुए। मुझे आज भी याद है उन्होंने मेरी पीठ पर जोर से हाथ मारा और कहा तुम भी राजनीति ही करोगे। वे युवाओं को सार्थक व सकारात्मक राजनीति करने के लिये प्रेरित करते रहते थे। अध्ययन पूरा करने के बाद उनकी सोच को मूर्तरूप देने के लिये ही मैं राजनीति में आया और उसके बाद कई ऐसे मौके आए जब जनेश्वर जी के साथ उठने, बैठने, उन्हें सुनने, समझने और उनसे कुछ सीखने का करीब से मौका मिला। राजनीति के बारे गें उनकी बेहद साफ समझ थी। समाजवादियों की क्या प्राथमिकतायें हों ? महिलाओं, नौजवानों, बेरोजगारों, किसानों और गरीबों के बारे में समाजवादी राजनीति का अंग रहते हुए किस नजरिये के साथ आगे बढ़ाया जाए , यह जनेश्वर जी ने डाo राममनोहर लोहिया से सीखा था और मैंने और मेरी पीढ़ी के नौजवान समाजवादियों ने जनेश्वर जी से । मेरा सौभाग्य है कि जब पहली बार कन्नौज से 1999 में लोकसभा का चुनाव लड़ा, खुद जनेश्वर जी मेरा नामांकन करवाने आए थे । चुनाव के दौरान भी उन्होंने कन्नौज में काफी वक्त दिया। उन्हें चुनाव प्रचार के दौरान करीब से देख कर मैंने भाषण देने और जनसम्पर्क के कई ऐसे तौर तरीके सीखे जिन्हें मैं आज भी आजमाता हूं । मुझे अच्छी तरह से याद है कन्नौज में चुनाव प्रचार के दौरान जब जनेश्वर जी से मीडिया के लोगों ने सवाल पूछा था कि आप तो परिवारवाद के विरोधी रहे हैं । फिर अखिलेश को राजनीति में क्यों बढ़ावा दे रहे हैं ? तब इसके जवाब में जनेश्वर जी ने कहा था यह संघर्ष का परिवारवाद है, सत्ता का परिवारवाद नहीं । उसके बाद जब मैं क्रांति रथ लेकर उत्तर प्रदेश के दौरे पर निकला तो नेताजी म समेत पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं की राय थी कि क्रांति-रथ को झंडी जनेश्वर जी ही दिखायेंगे, ऐसा था हमारी पार्टी में जनेश्वर जी के लिये सम्मान । नेताजी भी ज्यादातर बड़े फैसलों से पहले जनेश्वरजी की राय जरूर लेते थे। मैं जब पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गयातो सबसे पहले जनेश्वर जी से ही आशीर्वाद लेने गया था। उन्होंने मुझसे काफी देर तक बातें की और मुझे इस जिम्मेदारी का मतलब समझाया। संसद के ब सत्र के दौरान मेरी उनसे बार बार मुलाकात होती थी। उन्होंने कहा था कि तुम इस, संघर्ष को आगे बढाओ। समाजवादी नौजवानों के प्रशिक्षण शिविर जनेश्वर जी के बगैर कभी भी पूरे नहीं होते थे। किसी अनुभवी मास्टर की भूमिका में वे हें पुरानी बातें बताते थे और संधर्ष के तरीके समझाते थे और समाजवादी पार्टी के विस्तार की रणनीति की व्याख्या भी करते थे। वर्ष 2003 में जब लखनऊ में समाजवादी पार्टी के कार्यालय के बाहर पुलिस समाजवादी पार्टी के नौजवान कार्यकर्ताओं को पीट रही थी और कार्यालय के अंदर आंसू गैस के गोले दागे जा रहे थे, तब अंदर बने मंच पर जनेश्वर जी लगातार डटे रहे। उन्हें वहां से सुरक्षित हटा ले जाने की हम लोगों ने बहुत कोशिश की लेकिन वे नहीं माने और अपने अंदाज में कहा था - पार्टी का नौजवान लाठी खाएगा और जनेश्वर अन्दर बैठा रहेगा, यह नहीं हो सकता। मैंने समाजवाद की जो शिक्षा उनसे ली है उसे आगे बढ़ाना - आर्थिक नीतियों, किसानों, नौजवानों और महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर उनकी राय को आगे बढ़ाना ही हम सभी समाजवादी नौजवानों की उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। आज जब पूरे देश एवं प्रदेश में एक तरह से प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप में लोकतंत्र को चोट पहुचाई जा रही है, सरकारों द्वारा जनोन्मुखी नीतियों की बजाय भ्रष्टाचार तथा लूट को खुला संरक्षण दिया जा रहा है, ऐसे में जनेश्वर जी के शब्दों को हथियार बनाकर हमें चुनौती मानकर लड़ना होगा। हमें संकल्प लेना होगा कि विकृतियों विडम्बनाओं तथा वैरूप्य के विरुद्ध जो लड़ाई छोटे लोहिया लड़ा करते थे, वो अनवरत जारी रहेगी, उनके सपनों को मूर्तरूप देने के लिये आवश्यक हो गया है कि एकजुट होकर प्रदेश तथा राष्ट्रीय स्तर पर सतत् सत्याग्रह व संघर्ष किया जाय ।
-अखिलेश यादव
जनेश्वर जी आन्दोलन और संघर्ष के साथियों की बड़ी कद्र करते थे। उन पर यह फर्क नहीं पड़ता था कि वे सत्ता में हैं या विपक्ष में। सामान्यतया मैंने देखा है कि जब सोशलिस्ट भाई सत्ता में आ जाते हैं तो...
मेरे राजनीतिक एवं वैयक्तिक जीवन में जनेश्वर जी का जो स्थान है, वो शब्दों की परिधि से परे है, उसे अभिव्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है।